हिन्दू धर्म में स्वस्तिक का महत्त्व

                     हिन्दू धर्म में स्वस्तिक का महत्त्व



स्वस्तिक अत्यंत प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है । इसीलिए प्रत्येक शुभ और कल्याणकारी कार्य में सर्वप्रथम स्वस्तिक का चिह्न अंकित करने का आदिकाल से ही नियम है ।

👉स्वस्तिक शब्द मूलभूत 'सु' और 'अस्' धातु से बना है । 'सु' का अर्थ है - अच्छा, कल्याणकारी, मंगलमय । 'अस्' का अर्थ है - अस्तित्व, सत्ता। तो स्वस्तिक माने कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व ।

👉स्वस्तिक शांति, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक है । सनातन संस्कृति की परम्परा के अनुसार पूजन के अवसरों पर, दीपावली पर्व पर, बहीखाता पूजन में तथा विवाह, नवजात शिशु की छठी तथा अन्य शुभ प्रसंगों में व घर तथा मंदिरों के प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक का चिह्न कुमकुम से बनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि 'हे प्रभु ! हमारा कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र, वैभव आदि आयें वे पवित्र हों ।'


👉किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में यह स्वस्ति मंत्र बोला जाता है :

 स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः

  स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।

 स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः

  स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।


👉 महान कीर्तिवाले इन्द्रदेव ! हमारा कल्याण कीजिये, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव (सूर्यदेव) ! हमारा कल्याण कीजिये, जिनका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़देव ! हमारा मंगल कीजिये, बृहस्पतिजी ! हमारे घर में कल्याण की प्रतिष्ठा कीजिये ।' (यजुर्वेद : २५.१९)


👉स्वस्तिक का आकृति विज्ञान स्वस्तिक हिन्दुओं का प्राचीन धर्म-प्रतीक है । यह आकृति ऋषि-मुनियों ने अति प्राचीनकाल में निर्मित की थी। एकमेव अद्वितीय ब्रह्म ही विश्वरूप में फैला है यह बात स्वस्तिक की खड़ी और आड़ी रेखाएँ समझाती हैं । स्वस्तिक की खड़ी रेखा ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है । स्वस्तिक की चार भुजाएँ यानी भगवान श्रीविष्णु के चार हाथ । भगवान विष्णु अपने चार हाथों से दिशाओं का पालन करते हैं । देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ. - इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानी 'स्वस्तिक' !


👉सामुद्रिक शास्त्रों के अनुसार भी स्वस्तिक एक मांगलिक चिह्न है। भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के चरणों में भी स्वस्तिक चिह्न अंकित था ।


👉 ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी अपने सत्संगों में बताते हैं कि "स्वस्तिक समृद्धि व अच्छे भावी का सूचक है । इसके दर्शन से जीवनशक्ति बढ़ती है । स्वस्तिक के चित्र को पलकें गिराये बिना एकटक निहारते हुए त्राटक का अभ्यास करके जीवनशक्ति का विकास किया जा सकता है । आपके घर की दीवारों पर स्वस्तिक का चिह्न अथवा ॐ का चित्र लगा दीजिये । उसको देखने से भी आपकी आध्यात्मिक आभा (aura) बढ़ेगी और घर में सात्त्विकता बनी रहेगी ।"


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